चहल पहल भरे सोनपुर गांव म� अ�द�त नाम क� एक बु��मान लड़क� और उसका छोटा भाई
आय�न रहते थे। एक दोपहर उ�हा�ने देखा �क उनक� दादी कु एं से पानी क� बा�टी ख�चने क�
ब�त को�शश कर रही ह�।
“दादी, बा�टी को ऊपर ख�चना इतना क�ठन �या� है?” आय�न ने �च��तत होकर पूछा।
दादी ने माथा पा�छते �ए मु�कु राकर कहा, “बेटा, ऐसा इस�लए है �या��क बा�टी भार� है और
मुझे इसे उठाने के �लए ब�त �यास करना पड़ता है।”
उस शाम, अ�द�त आम के पेड़ के नीचे बैठ� गहर� सोच म� डूबी �ई थी। “आय�न, हम दादी के
�लए इसे कै से आसान बना सकते ह�?”
आय�न ने अपना �सर खुजलाया। “शायद हम एक �सर� र�सी बाँधकर साथ �मलकर ख�च
सकते ह�?”
अ�द�त ने एक पल सोचा और कहा, “ले�कन तब भी उतनी ही मेहनत लगेगी। कोई और तर�का
भी होगा।”
तभी आय�न क� आँख� चमक उठ�। “�या होगा अगर हम प�हये जैसी कोई गोल चीज़ इ�तेमाल
कर�? जब म� अपनी �खलोने क� गाड़� घुमाता �ँ, तो उसे घुमाना आसान लगता है।”
“कु छ इसे नीचे ख�चता है? वह �या है?” आय�न ने पूछा।
“हाँ," �वा�त ने �सर �हलाया। “इसे गु��वाकष�ण कहते ह�।
गु��वाकष�ण हर चीज़ को नीचे क� ओर ख�चता है। इस�लए
उसे उठाना मु��कल लगता है।”
अ�द�त अचानक बीच म� उ�साह से आम के पेड़ पर इशारा
करते �ए बोली, “जैसे जब आम �गरता है - तो गु��वाकष�ण
उसे नीचे ख�चता है, है ना?”
जा�ई चरखी
अ�द�त ने �सर �हलाया और कहा, “चलो �वा�त दीदी से पूछते ह�! वह हमेशा चाचा क�
काय�शाला म� चीज़� ठ�क करती रहती ह�।”
दोना� अपने चाचा क� काय�शाला म� प�ंचे, जहां हर जगह औजार, र��सयाँ और लकड़� के त�ते
पड़े थे।
अ�द�त: “�वा�त दीदी, �या आप दादी का काम आसान करने के �लए कु छ बनाने म� हमार� मदद
कर सकती ह�?” अ�द�त ने आगे कहा, “दादी कु एँ से बा�टी ख�च रही थ�, और उ�ह� ऐसा करने
म� मु��कल हो रही थी।”
“ले�कन हम� इतनी मेहनत �या� करनी पड़ती है?” आय�न ने उ�सुकता से पूछा।
�वा�त मु�कु रायी और समझाने लगी। “यह �यास बल के कारण है। बल बस एक ध�का या
�ख�चाव है। जब म� बा�टी को ऊपर ख�चती �ँ, तो गु��वाकष�ण इसे नीचे ख�चता है, यही कारण
है �क इसे उठाना क�ठन लगता है।”
“�ब�कु ल!" �वा�त ने कहा। “यही गु��वाकष�ण बा�टी को इतना भार� बना रहा है। ले�कन इसे
आसान बनाने का एक तर�का है।”
“कै से?” आय�न ने उ�साह से पूछा!
“हम एक चरखी का उपयोग कर सकते ह�,” �वा�त ने कहा।
“एक चरखी? वह �या है?” आय�न ने पूछा।
�वा�त ने बताया, “चरखी भार� चीज़ा� को उठाना आसान बना देती है। इसम� एक प�हया होता है
�जसके चारा� ओर एक खांचा बना होता है। जब आप उस खांचे म� एक र�सी डालते ह�, तो सीधा
ऊपर ख�चने क� बजाय नीचे ख�च सकते
ह�, और वह ह�का महसूस होता है।”
“ले�कन, यह ह�का �या� लग रहा है?” अ�द�त ने
उलझन भरे �वर म� पूछा।
�वा�त ने मु�कु राते �ए कहा, “यह एक अ�ा
सवाल है! मान ली�जए �क आप एक भार� बा�टी
को सीधा ऊपर ख�च रहे ह�। यह मु��कल है, है
ना?”
अ�द�त और आय�न ने �सर �हलाया।
�वा�त ने आगे कहा, “ऐसा इस�लए है �या��क
गु��वाकष�ण बा�टी को नीचे क� ओर ख�च रहा है, इस�लए आपको ऊपर क� ओर एक बल
लगाने क� आव�यकता है जो गु��वाकष�ण के �ख�चाव से अ�धक मजबूत हो।”
“अब, चलो चरखी के बारे म� सोचते ह�,” �वा�त ने आगे कहा। “जब आप चरखी का इ�तेमाल
करते ह�, तो सीधे ऊपर ख�चने के बजाय, आप र�सी को नीचे ख�चते ह�।”
अ�द�त उ�सुक �दखी। “तो, चरखी �दशा बदलकर काम आसान कर देती है?”
“�ब�कु ल!” �वा�त ने मु�कु राते �ए कहा। “बा�टी को ऊपर ख�चने के बजाय, आप र�सी को
नीचे ख�चते ह�। इससे बा�टी ह�क� नह� होती, ले�कन नीचे ख�चने से आप अपने शर�र के वजन
का बेहतर इ�तेमाल कर पाते ह�, �जससे काम आसान लगता है।”
“�या हम एक चरखी बना सकते ह�?” अ�द�त ने उ�साह से पूछा।
“ज़�र! चलो कु छ सामान इक�ा करते ह�,” �वा�त ने कहा। उ�ह� एक पुराना साइ�कल का
प�हया, एक मज़बूत र�सी और एक लकड़� का �े म �मला।
सबसे पहले उ�हा�ने प�हये को धातु क� छड़ पर चढ़ाया और उसे लकड़� के �े म से जोड़ �दया।
�फर उ�हा�ने प�हये के खांचे म� र�सी डाली और एक छोर को खाली बा�टी से बांध �दया।
“चलो इसका पर��ण करते ह�!” �वा�त ने कहा।
ले�कन जैसे ही आय�न ने र�सी ख�चनी शु� क�, एक बकर� काय�शाला म� घुस आई और र�सी
के �सरे �सरे को ख�चने लगी! बा�टी जोर से �हली, और ब�चे जोर से हंसने लगे।
“बकर� जी भी मदद करना चाहती ह�!” आय�न ने �खल�खलाते �ए कहा।
जब बकर� को धीरे से भगाया गया, तो अ�द�त ने र�सी ख�ची। उसे आ�य� �आ �क बा�टी
आसानी से ऊपर उठ गई।
“यह अ��त है!” अ�द�त ने उ�साह से कहा, “यह तो ब�त ह�का लग रहा है!”
�वा�त ने मु�कु राते �ए कहा, “यही चरखी क� खा�सयत है। इस तरह, आपको बा�टी उठाने के
�लए अ�धक बल का उपयोग करने क� आव�यकता नह� है, �या��क आप गु��वाकष�ण क� �दशा
म� बल लगा रहे ह�, न �क उसके �व��।”
अगली सुबह, उ�हा�ने कु एँ के ऊपर चरखी लगा दी। दादी ने इसे आज़माया और आ�य�च�कत रह
गइ�। “वाह! यह अ��त है! अब यह इतना आसान है!”
पड़ोसी चरखी को काम करते �ए देखने आए। एक अंकल ने मज़ाक म� कहा, “अब म� इसका
इ�तेमाल चावल के भार� बैग उठाने के �लए कर सकता �ँ!” सभी ने अ�द�त, आय�न और �वा�त
के �लए हँसते �ए ता�लयाँ बजाइ�।
बाद म�, जब भाई-बहन कु एं के पास बैठे , आय�न ने कहा, “हमने आज ब�त कु छ सीखा! बल ही
वह श��त है जो हम� आगे बढ़ने म� मदद करती है— हर जगह—जब हम दरवाज़े को ध�का देते
ह�, पानी ख�चते ह�, या यहाँ तक �क अपने �कू ल बैग को भी उठाते ह�। और गु��वाकष�ण हमेशा
चीज़ा� को नीचे क� ओर ख�चता है।”
अ�द�त ने कहा, “और चरखी जैसी सरल मशीन� हमारे काम को आसान बनाने म� मदद करती
ह�।” उ�हा�ने आगे कहा, “अगर हम आज दादी क� मदद के �लए कु छ आ�व�कार कर सकते ह�,
तो क�पना कर� �क हम भ�व�य म� और �या बना सकते ह�!”
“�बलकु ल सही!” �वा�त ने कहा। “रचना�मकता और एकजुट होकर काम करने से आप �कसी
भी सम�या को हल कर सकते ह�।”
आय�न क� आँख� चमक उठ�। “हाँ! शायद हम गे�ँ क� बो�रयाँ ढोने के �लए कु छ बना सक� या
रसोई म� माँ क� मदद भी कर सक� !”
�वा�त ने हँसते �ए कहा। “यह �ई ना बात! हमारे आस-पास ब�त सार� सरल मशीन� ह�—जैसे
लीवर, प�हए और ��के �ए तल। �या पता, आप आगे इससे �या-�या बनाएंगे?”
अ�द�त और आय�न उ�सा�हत होकर एक �सरे क� ओर देखने लगे। “चलो और खोज करते ह�
और देखते ह� �क हम आगे �या आ�व�कार कर सकते ह�!”
इतना कहकर दोना� भाई-बहन अपने अगले बड़े आइ�डया के सपना� म� खोए �ए दौड़ पड़े।