�वशाल, भीम और सागर ब�त अ�े दो�त थे। एक �दन �वशाल
के �दमाग म� सागर के �लए एक सर�ाइज बथ�डे पाट� रखने का
�वचार आया �या��क दो �दन बाद ही उसका ज�म�दन था।
उसने ख़ुशी से उछल कर सोचा, "चलो सागर के �लए एक
सर�ाइज बथ�डे पाट� रख�! म� भीम को भी आमं��त क�ं गा!
सागर उसे देखकर ब�त खुश होगा।"
उ�हा�ने सजावट के �लए गु�बारे, कु क�ज़ का एक बड़ा जार और
सागर के ज�म�दन के उपहार के �प म� उसके नाम वाला एक
�वशेष मग चुना।
जैसे ही वे जाने वाले थे, �वशाल को अचानक से याद आया,
"अरे नह�! हम के क भूल गये!"
भीम हँसा. "�च�ता मत करो। यहाँ हाल ही म� एक नई के क क�
�कान खुली है।" चलते-चलते �वशाल ने पूछा, "के क �कतना
बड़ा होना चा�हए?"
�वशाल ने अपनी मां का फोन उठाया और भीम को फोन करके
सागर के �लए सर�ाइज बथ�डे पाट� का �वचार बताया। भीम, जो
हमेशा मदद के �लए तैयार रहता है, �वशाल के �वचार से सहमत
�आ और बोला, "यह तो ब�त ब�ढ़या है! चलो सब कु छ तैयार
कर ल�!"
अगले �दन �वशाल और भीम, भीम क� माँ के साथ बाज़ार गए।
रह�यमय गु�बारा